गुरुद्वारा आरती साहिब

गुरुद्वारा आरती साहिब, 1508 में गुरु नानक देव जी की जगन्नाथ पुरी यात्रा की स्मृति में समर्पित एक श्रद्धास्थल है। यह उनकी पहली उदासी के दौरान की गई यात्रा थी। भाई मरदाना जी के साथ पुरी पहुंचे गुरु जी की दिव्यता को प्रारंभ में नहीं पहचाना गया। उनके वस्त्रों को देखकर कुछ पुजारियों ने उन्हें मुस्लिम समझ लिया और मंदिर में प्रवेश से रोक दिया गया।

गुरु जी बिना विचलित हुए समुद्र किनारे ध्यान में लीन हो गए। इसी दौरान एक चमत्कारी घटना हुई—एक रहस्यमय व्यक्ति स्वर्ण पात्रों में भोजन और जल लेकर आया। उसी रात, पुरी के राजा प्रताप रुद्र देव ने स्वप्न में देखा कि भगवान जगन्नाथ ने उन्हें आरती रोककर समुद्र किनारे हो रहे भजन सुनने का आदेश दिया। अगली सुबह राजा ने गुरु नानक देव जी को ध्यान में लीन देखा और उनकी महानता को पहचानते हुए उन्हें ससम्मान आमंत्रित किया।

बाद में जब गुरु जी को मंदिर की पारंपरिक आरती में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया, उन्होंने मूर्तिपूजा में भाग लेने से इनकार कर दिया। इसके स्थान पर वे मंदिर परिसर में एक बरगद के वृक्ष के नीचे खुले आकाश के नीचे बैठे और राग धनासरी में आरती का गायन किया—जो आज गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। इस ब्रह्मांडीय आरती में गुरु जी ने बताया कि आकाश थाल है, सूर्य-चंद्र दीपक हैं, तारे मोतियों के समान हैं और पवन चंवर झलता है—प्रकृति स्वयं ईश्वर की महिमा गाती है।

इस ऐतिहासिक घटना के 500 वर्षों तक पुरी में कोई सिख स्मारक नहीं था। 2007 में श्री अकाल तख्त साहिब में हुई बैठक के बाद एक हुकमनामा जारी हुआ, जिसमें बाबा शमशेर सिंह जी को गुरुद्वारा आरती साहिब की स्थापना और पुरी के अन्य ऐतिहासिक सिख स्थलों की मर्यादा बहाल करने की सेवा सौंपी गई। पुरी के समुद्र तट के पास बालिया पांडा में भूमि खरीदी गई, और एक वर्ष के भीतर गुरुद्वारा बनकर तैयार हुआ। इसका उद्घाटन 4 अप्रैल 2010 को तख्त श्री पटना साहिब के जत्थेदार द्वारा किया गया।

तब से यह गुरुद्वारा न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र बन गया है, बल्कि गुरु नानक देव जी के ईश्वर की एकता, आंतरिक भक्ति और सृष्टि में निहित दिव्यता के संदेश का प्रतीक भी बन चुका है। देश-विदेश से संगत यहाँ पहुंचती है और इस पवित्र स्थल से आशीर्वाद प्राप्त करती है।

पुरी में गुरुद्वारा श्री आरती साहिब तक पहुंचने के लिए नीचे कई विकल्प दिए गए हैं:

  • हवाई मार्ग से: सबसे निकटतम हवाई अड्डा बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (भुवनेश्वर) है, जो पुरी से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से पुरी शहर तक टैक्सी और बस सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं।

  • रेल मार्ग से: पुरी रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से गुरुद्वारा तक पहुंचने के लिए ऑटो-रिक्शा या टैक्सी का उपयोग किया जा सकता है।

  • सड़क मार्ग से: पुरी, भुवनेश्वर, कटक और ओडिशा के अन्य शहरों से राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के माध्यम से अच्छी तरह जुड़ा है। पास के शहरों से नियमित रूप से सरकारी और निजी बसें उपलब्ध रहती हैं।

  • स्थानीय मार्गदर्शन: गुरुद्वारा पुरी समुद्र तट के पास ‘बालिया पांडा’ क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान स्थानीय लोगों के बीच अधिक प्रसिद्ध नहीं है, इसलिए “लाइट हाउस या बालिया पांडा के पास सिख गुरुद्वारा” पूछने पर अधिक सहायता मिल सकती है। साथ ही, डिजिटल नक्शे (मैप) का उपयोग करना भी सहायक रहेगा।

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